अगर-मगर : गुलज़ार

 

चित्र - अतनु रॉय 

आज गुलज़ार साब का जन्मदिन है। 87 बरस के हो गए हैं। चकमक की पूरी टीम की तरफ से गुलज़ार साब को जन्मदिन की बहुत मुबारकबाद। उनके गीतों और नज़्मों को तो आपने सुन ही रखा है।आज हम आपको बच्चों के सवाल जवाब की एक श्रंखला 'अगर-मगर' के कुछ अंश दे  रहे हैं।  बच्चों ने उनसे कुछ सवाल पूछे हैं।
आइए देखें की गुलज़ार साब ने क्या जवाब दिए हैं। 



1. यदि किताबें न होतीं तो क्या होता?
- खुशप्रीत कौर, छठी, रा. मा. वि. धर्मापुरा, सिरसा हरियाणा
- मास्टर तो तब भी होता। स्कूल तो जाना ही पड़ता। 

2. अगर दुनिया चपटी होती तो?
- आदित्य जैन, चौथी, डीपीएस पुणे
- तो आप गोल होते।

3. पेड़-पौधे क्यों नहीं चलते हैं?
- खिरोद यादव, सातवीं, शा.उ.प्रा.शाला, बोईरमल, महासमुन्द (छत्तीसगढ़)
- पेड़ों के गर गाँव होते
जाकर सब जंगल में रहते
इन्सान के हाथों कटने से क्या, तब बच जाते?


4. सपने क्यों आते हैं?
- राजेश, आठवीं, पूर्व मा. विद्यालय गर्गन पूरवा, अतर्रा, बाँदा (उ.प्र.)
- नींद में सोचते रहने से।

5. आप सिर्फ सफेद रंग के वस्त्र क्यों पहनते हैं?
- लक्ष्य सिंह, चौथी, डीपीएस पटना
- इसमें दाग लगे तो फौरन नज़र आ जाता है।

6. हम समय को रोक क्यों नहीं सकते?
- रोहित बिस्वास, ग्यारहवीं, केन्द्रीय विद्यालय क्र.1, कांचरापाड़ा, पश्चिम बंगाल
- उसके ब्रेक नहीं है।

7. उल्लू रात में क्यों जगा रहता है?
- मो. नसीम, चौथी, आदर्श हिन्दी हाई स्कूल, कोलकाता
- मैं तो सो जाता हूँ। किसी दिन जगा रहा तो 
उससे पूछूँगा।

8. हम हवा को क्यों नहीं पकड़ पाते?
- रज़िया बानो, तीसरी, अंक इंडिया, नोएडा
- बादबानों में तो पकड़ी जाती है।

9. आपको हमारी कहानी और प्रश्न पढ़ने में 
कितना समय लगता है और आप इतना समय 
कैसे निकाल पाते हैं?
- सुनिता, पाँचवीं, अंक इंडिया, नोएडा।
- हर दिन चौबीस घण्टे बहुत होते हैं।

10. मछली पानी के बिना क्यों नहीं रह सकती?
- विजय, तीसरी, अंक इंडिया, नोएडा।
- पानी के बगैर तो हम भी नहीं रह सकते, विजय।


12. चूहों के बच्चों की आँखें बन्द क्यों रहती हैं?
- अभिनव तिवारी, चौथी, ज्ञान सागर एकेडमी, देवास (म.प्र.)
- दूध पीते सभी बच्चों की आँखें बन्द रहती हैं, अभिनव। जब 
रोते हैं तब भी और जब सोते हैं तब भी।

13. आग पानी से ही क्यों बुझती है?
- श्रद्धा बावसकर, चौथी, देवास (म.प्र.)
- ये तो सच नहीं है, आग कई तरह से बुझाई जाती है। 
टीचर से पूछो


(चकमक जनवरी, 2017  में प्रकाशित)







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