किताब अंश - बोरेवाला- जयश्री कलत्तिल
डिफरेंट टेल्स क्षेत्रीय भाषा की कहानियाँ ढूँढ-ढूँढकर निकालता है, ऐसी कहानियाँ जो ज़िन्दगी की बातें करती हैं- ऐसे समुदायों के बच्चों की कहानियाँ जिनके बारे में बच्चों की किताबों में बहुत कम पढ़ने को मिलता है। कई सारी कहानियाँ लेखकों के अपने बचपन का बयान करते हुए बड़े होने के अलग-अलग ढंगों को प्रस्तुत करती हैं, प्राय: एक प्रतिकूल दुनिया में जहाँ वे हमजोलियों, पालकों और अन्य वयस्कों से नए सम्बन्ध बनाते हैं। ज़ायकेदार व्यंजनों, छोटे-छोटे जुगाड़ू खेलों, स्कूल के अनापेक्षित सबकों और दिलदार दोस्तियों के माध्यम से ये कहानियाँ हमें एक दिलकश सफर पर ले जाती हैं। इसी सीरीज़ की एक किताब के बारे में आज हम बता रहे हैं जिसका नाम है' बोरेवाला' इसे जयश्री कलत्तिल ने लिखा है। अंग्रेज़ी से हिंदी अनुवाद शशि सबलोक ने किया है। चित्रांकन राखी पेसवानी ने किया है। इस किताब के चित्रों में भी आपको एक अनूठापन मिलेगा। पेश है इस किताब के कुछ अंश।
मैं “बालरमा” पढ़ने लगी। खेलने और देर तक धूप में रहने से मेरी आँख लग गई। जब उठी तब तक अँधेरा हो गया था। मैं बत्ती जलाए बगैर लेटी रही। तभी पीछे के दरवाज़े पर ज़ोर का शोर हुआ। मैंने रसोई की खिड़की से देखा। चाकप्रान्दन खड़ा था।हालाँकि मैंने तय कर लिया था कि आज वो आया तो उसे खाना दूँगी। पर मुझे अभी भी डर लग रहा था। मैं ऊपर गई। सोचा अम्मा को बुला लाऊँ। पर कोई जवाब न मिला।मैं फिर से रसोई में आई और थोड़ा-सा दरवाज़ा खोल दिया। चाकप्रान्दन ने मुझे देखा और अपनी प्लेट मेरी ओर बढ़ा दी। वो जगह-जगह से मुड़ी-तुड़ी और पिचकी हुई थी। मैंने उससे इन्तज़ार करने को कहा और रसोई में आकर उसकी प्लेट में चावल और साम्भर परोस दिया। एक पापड़ भी रख दिया। फिर वह प्लेट रसोई के दरवाज़े के बाहर रखकर जल्दी से पीछे हट गई। चाकप्रान्दन ने प्लेट उठाकर अपनी प्लेट में पलट दी। फिर वह वहीं बैठकर खाने लगा मैं उसे खाते देखती रही। उसके बाल धूल से सने थे। दाढ़ी घनी थी। माथे पर ज़ख्म का एक छोटा-सा निशान था। दोनों हाथों पर मच्छरों के काटने के निशान थे। उसने अपने बोरे में मुँह घुसाकर कुछ ढूँढा और टीन का एक मग्गा निकाल लिया। यह उसकी प्लेट जैसा ही मुड़ा-तुड़ा था। मैं मुड़ी और जग में पानी ले आई।फिर वहीं बैठकर चुपचाप उसे देखने लगी। कोशिश कर रही थी कि उसे घूरती न रहूँ। वह बिना बहुत चबाए जल्दी-जल्दी खा रहा था। खाने के बाद वो “कल” जैसा कुछ बोला और चला गया।'
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