तालीम हमारा हक़ है - मलाला

 


Malala in her childhood home (Image source-podium.bulletin)

12 जुलाई 1997 में जन्मी मलाला, ज़ियाउद्दीन युसुफज़ई की बेटी है। ज़ियाउद्दीन स्वात वादियों के बीच बसे मिन्गोरा कस्बे में खुशाल पब्लिक स्कूल चलाते हैं। यह नाम उन्होंने 17वीं शताब्दी के प्रसिद्ध पशतून नेता और कवि खुशाल खान खटक के नाम पर रखा है जिन्होंने स्वात की एकता को कायम रखने में अहम भूमिका निभाई। मलाला का नाम भी उन्होंने मावन्द की एक युवा कवियत्री के नाम पर रखा जिसने स्वात की सेना के साथ अँग्रेज़ी 
फौजों का सामना किया और लड़ाई में मारी गई।

जब मलाला ने यह ब्लॉग लिखा तब वह केवल 11-12 साल की थी। आज वो 24 की है। बीबीसी में 
प्रकाशित इस डायरी से बाहरी दुनिया में मलाला की पहचान बनी। उस पर फिल्म बनी। उससे पाकिस्तानी 
टीवी पर कई इंटरव्यू भी लिए गए। पाकिस्तान के “मॉर्निंग विद फरहा” नाम के टीवी 
कार्यक्रम में मलाला से पूछा गया कि आमतौर पर तो बच्चों को छुट्टियाँ पसन्द होती हैं तो स्कूल बन्द करा 
दिए जाने पर तुम खुश क्यों नहीं हुई? उसका जवाब था, 
“वो छुट्टियाँ नहीं पाबन्दी थी। दहशतगर्दों ने कहा - तुम स्कूल नहीं जाओगे। उम्र भर के लिए नहीं जाओगे। 
ऐसी हालत में आवाज़ उठाना बहुत ज़रूरी था।” 


ये हैं मलाला की डायरी के कुछ हिस्से जिसे 2012 में चकमक प्रकाशित किया गया था।  


शनिवार, 3 जनवरी 2009
... मुझे स्कूल जाते हुए डर लग रहा था क्योंकि तालिबान ने घोषणा की है कि लड़कियाँ स्कूल न जाएँ। आज हमारी क्लास में 27 में से सिर्फ 11 लड़कियाँ आईं। लोग तालिबान की घोषणा से डर गए हैं। मेरी तीन सहेलियाँ स्कूल छोड़कर अपने परिवार के साथ पेशावर, लाहौर और रावलपिण्डी चली गई हैं। हैड मिस्ट्रेस साहेबा ने कहा कि तालिबान के डर से कल से स्कूल 
की वर्दी बन्द की जा रही है। आगे से घर के कपड़े पहनकर स्कूल आएँ। उन्होंने यह भी समझाया कि रास्ते में हमारा सामना तालिबान से हो तो हमें क्या करना चाहिए।एक बजकर चालीस मिनट पर स्कूल की छुट्टी हुई। घर जाते हुए रास्ते में मुझे एक आदमी की आवाज़ सुनाई दी। वो कह रहा था, “मैं तुम्हें छोड़ूँगा नहीं।” मैं डर गई और अपनी रफ्तार बढ़ा दी। थोड़ा आगे जाकर पीछे मुड़कर देखा कि वो किसी को फोन पर धमकियाँ दे रहा था। मेरी जान में जान आई..

रविवार, 4 जनवरी 2009
आज छुट्टी है इसलिए मैं 9.40 पर जागी। लेकिन उठते ही अब्बा ने बुरी खबर सुनाई कि आज फिर ग्रीन चौक में तीन शव मिले हैं। दोपहर भर मेरा मन खराब रहा। जब स्वात में सैन्य कार्रवाई शुरू नहीं हुई थी उस समय हम सभी घरवाले रविवार को पिकनिक मनाने मरगज़ार, फिज़ा घाट और कानजू जाते थे। अब हालात इतने खराब हो गए हैं कि डेढ़ साल से हम पिकनिक तक नहीं जा पाए हैं। पहले रात को खाने के बाद सैर के लिए बाहर जाया करते थे। अब तो शाम को ही घर लौट आना पड़ता है। मैंने आज घर के काम किए, होमवर्क और थोड़ी देर के लिए छोटे भाई के साथ खेली। कल सुबह फिर स्कूल जाना है और मेरा दिल अभी से धड़क रहा है।

बुधवार, 7 जनवरी 2009
मैं मुहर्रम की छुट्टियाँ गुज़ारने अपने परिवार के साथ बुनेर ज़िला आई हूँ। बुनेर मुझे बहुत पसन्द आया। यहाँ चारों ओर पहाड़ और सब्ज़ वादियाँ हैं। मेरा स्वात भी बहुत सुन्दर है लेकिन वहाँ अमन नहीं है। यहाँ अमन है और सुकून भी। न गोलियों की आवाज़ें, न कोई डर। हम सब बहुत खुश हैं।मैंने एक लड़की को स्कूल जाते देखा। वह छठी क्लास में पढ़ती थी। मैंने उसे रोका और पूछा, “तुम्हें स्कूल जाते हुए डर नहीं लगता।” उसने पूछा, “किससे?”मैंने कहा, “तालिबान से।” उसने जवाब दिया, “यहाँ तालिबान नहीं हैं।”

शुक्रवार, 9 जनवरी 2009
आज मैंने स्कूल में अपनी सहेलियों को बुनेर-यात्रा के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि तुम्हारे ये किस्से सुनते-सुनते हमारे कान पक जाएँगे। हमने एफएम चैनल पर भाषण देने वाले तालिबान नेता मौलाना शाह की मौत के बारे में उड़ाई गई खबर पर खूब बहस की। उन्होंने लड़कियों के स्कूल जाने पर प्रतिबन्ध की घोषणा की थी। कुछ लड़कियों ने कहा कि वे मर गए हैं। कुछ ने कहा, “नहीं ज़िन्दा हैं। क्योंकि उन्होंने कल रात भाषण नहीं दिया इसीलिए उनकी मौत की अफवाह फैलाई गई थी।” एक लड़की ने कहा कि वह छुट्टी पर चले गए हैं।

बुधवार, 14 जनवरी 2009
आज मैं स्कूल जाते समय बहुत दुखी थी क्योंकि कल से सर्दियों की छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं। हैड मिस्ट्रेस ने छुट्टियों की घोषणा तो की पर स्कूल खुलने की मुकर्रर तारीख नहीं बताई। ऐसा पहली बार हुआ है। पहले हमें हमेशा छुट्टियों के खत्म होने की तारीख बताई जाती थी। वजह तो उन्होंने नहीं बताई लेकिन मेरा मानना है कि तालिबान ने 15 जनवरी के बाद लड़कियों के स्कूल जाने पर जो मनाही लगाई है वही इसका कारण है।इस बार और लड़कियाँ भी छुट्टियों के बारे में पहले की तरह खुश नहीं दिखीं। उन्हें डर था कि अगर तालिबानी घोषणा पर अमल किया गया तो शायद वे दोबारा स्कूल न आ सकें। निकलते वक्त मैंने स्कूल की इमारत पर ऐसी नज़र डाली जैसे पता नहीं फिर यहाँ आया जा सकेगा कि नहीं!कुछ लड़कियाँ उम्मीद कर रही थीं कि इंशाअल्लाह फरवरी में स्कूल फिर खुल जाएगा लेकिन कुछ ने बताया कि उनकी पढ़ाई जारी रखने के लिए उनके माँ-बाप ने स्वात छोड़ने का फैसला कर लिया है।

गुरुवार, 15 जनवरी 2009
आज 15 जनवरी है यानी तालिबानी घोषणा के मुताबिक लड़कियों के स्कूल जा पाने का आखरी दिन। मेरी क्लासफैलो कुछ इस यकीन से होमवर्क कर रही है जैसे कुछ हुआ ही न हो। आज मैंने स्थानीय समाचार पत्र में बीबीसी में प्रसारित अपनी डायरी पढ़ी। मेरी माँ को मेरा फर्ज़ी नाम “गुल मकई” बड़ा पसन्द आया। वो अब्बू से कहने लगीं कि मेरा नाम बदलकर गुल मकई क्यों नहीं रख लेते! मुझे भी यह नाम पसन्द है। मुझे अपना नाम मलाला अच्छा नहीं लगता क्योंकि इसके मायने है – अफसोस ज़दा।
अब्बू ने कहा कि कुछ दिन पहले किसी ने डायरी का प्रिंट लेकर उन्हें दिखाया था कि देखो स्वात की किसी लड़की की कितनी ज़बरदस्त डायरी छपी है। अब्बू ने कहा कि मैंने मुस्कुराते हुए डायरी पर नज़र डाली। पर डर के मारे यह न कह सका कि हाँ, यह मेरी बेटी है। 

रविवार, 18 जनवरी 2009
आज अब्बू ने बताया कि सरकार हमारे स्कूलों की सुरक्षा करेगी। प्रधानमंत्री ने भी हमारे बारे में बात की है। मैं बहुत खुश हुई। लेकिन इससे तो हमारी समस्या हल नहीं होगी। यहाँ स्वात में हम रोज़ाना सुनते हैं कि अमुक जगह पर इतने सैनिक मारे गए, इतनों का अपहरण हुआ। पुलिसवाले तो आजकल शहर में नज़र नहीं आ रहे हैं। हमारे माँ-बाप भी बहुत डरे हुए हैं। वे कहते हैं कि जब तक तालिबान खुद एफएम चैनल पर अपनी घोषणा वापस नहीं ले लेते वे हमें स्कूल नहीं भेजेंगे। खुद सेना की वजह से हमारी पढ़ाई पर असर पड़ रहा है। आज हमारे मुहल्ले का एक लड़का स्कूल गया तो टीचर ने कहा कि तुम घर वापस चले जाओ क्योंकि कफ्र्यू लगने वाला है। वह जब वापस आया तो पता चला कि कफ्र्यू नहीं लग रहा बल्कि रास्ते से सैनिकों के काफिले को गुज़रना था। इसलिए स्कूल की छुट्टी कर दी।




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