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मेरी भी आभा है इसमें - नागार्जुन

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   चकमक के पिछले कुछ अंको में शामिल बाबा नागार्जुन की कुछ कविताएँ  बाघ आया उस रात - नागार्जुन  "वो इधर से निकला  उधर चला गया"  वो आँखें फैलाकर  बतला रहा था-  "हाँ बाबा, बाघ आया उस रात,  आप रात को बाहर न निकलो!  जाने कब बाघ फिर से बाहर निकल जाए !  "हाँ वो ही, वो ही जो  उस झरने के पास रहता है  वहाँ अपन दिन के वक़्त गए थे न एक रोज़ ?  बाघ उधर ही तो रहता है बाबा, उसके दो बच्चे हैं  बाघिन सारा दिन पहरा देती है  बाघ या तो सोता है  या बच्चों से खेलता है, दूसरा बालक बोला-  "बाघ कहीं काम नहीं करता  न किसी दफ्तर में  न कॉलेज में"  छोटू बोला  "स्कूल में भी नहीं..."  पांच-साला बेटू ने  हमें फिर आगाह किया  "अब रात को बाहर होकर बाथरूम न जाना"  चित्र - अनाम, आनंद निकेतन स्कूल, सेवाग्राम स्कूल वर्धा महाराष्ट्र  मेरी भी आभा है इसमें - नागार्जुन  नए गगन में  नया सूर्य जो चमक रहा है  यह विशाल भूखण्ड  आज जो दमक रहा है  मेरी भी आभा है इसमें भीनी भीनी ख़ुशबूवाले  रंग-बिरंगे  यह जो फूल खिलें हैं  कल इनको मेरे प्राणों ने नहलाया था  कल इनको मेरे सपनों ने सहलाया था