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Showing posts from July, 2021

बाघों का शिकार का एक किस्सा...

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  बाघों का शिकार - अमित कुमार चित्र - दिलीप चिंचालकर मध्यप्रदेश में है पन्ना का समृद्ध राष्ट्रीय उद्यान। 543 वर्ग किलोमीटर में फैला यह उद्यान बाघ, तेन्दुए, साम्भर, चिंकारा, रीछ, लोमड़ी, जंगली बिल्ली जैसे न जाने कितने जीवों का घर है। मैं डिस्कवरी चैनल के लिए बाघों पर एक फिल्म बना रहा था। वह करीब आठ महीने का प्रोजेक्ट था जिसमें बदलते मौसम में बाघ की दिनचर्या में आनेवाले बदलावों का अध्ययन करना था। टीम में मेरे साथ दो कैमरामैन और दो सहायक थे। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान के अधिकारी भी समय-समय पर साथ रहते थे। उद्यान के निदेशक ने मुझे जंगल के उत्तर-पूर्वी इलाके में काम करने का सुझाव दिया। यह जंगल का काफी समृद्ध इलाका है। यहाँ दो जलाशय, घास के मैदान, साल का घना जंगल और थोड़ा चट्टानी क्षेत्र था। हमें बताया गया कि यह चार बाघिनों और दो बाघों का इलाका है। नर बाघ मादा के इलाके में आते-जाते रहते हैं पर कोई दूसरा नर वहाँ आ जाए तो उसे घुसपैठिया समझा जाता है। अपने सहयोगियों के साथ मैं तीन दिनों तक उस इलाके में घूमा। और फिर चार जगहों पर कैमरा सेट किए और दो पेड़ों पर मचान तैयार कराई। अब हम फिल्म शूट करने के...

कमाल के सवाल के कमाल – अमिताश ओझा

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  कमाल के सवाल के कमाल – अमिताश ओझा (चकमक, फरवरी 2008 में प्रकाशित)  क्या तुम्हें लगता नहीं कि हम सब कुछ अजीब से हो गए हैं ? हम बस जवाबों की ओर ध्यान देते हैं , सवाल पूछना तो हम भूल ही गए हैं। सवाल पूछने वालों को मूर्ख या पागल समझा जाता है जबकि सच तो यह है कि सही सवालों में ही सही जवाब छिपे होते हैं। जवाब ढूँढने से बड़ा काम है सही सवाल करना। जैसे पिछली सदी के एक बड़े वैज्ञानिक का उदाहरण लेते हैं –सर आइज़क न्यूटन। कहते हैं न्यूटन एक पेड़ के नीचे बैठे थे – हम सब बैठते हैं। अचानक एक सेब गिरा। ऐसा कोई पहली बार तो नहीं हुआ था। पर सवाल केवल न्यूटन ने ही किया। एक साधारण-सा सवाल कि सेब पेड़ से टूटकर नीचे ही क्यों गिरा , आसमान में क्यों नहीं उड़ गया ? आज इस सवाल को महान माना जाता है। तो क्या न्यूटन से पहले यह सवाल किसी के दिमाग में नहीं आया होगा ?   पूछूँ कि नहीं... ? ज़रा इन सवालों को देखो हम सवाल पूछने से डरते हैं। हमें लगता है कि अगर सवाल पूछ लिया तो सब को पता चल जाएगा कि मुझे नहीं आता। तब दुनिया क्या कहेगी ?   कक्षा के बाकी बच्चे क्या कहेंगे ? टीचर क्या सोचेंगे ? स्कूलों ...

भोर का नाम बाँसुरी था- प्रभात

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प्रभात हिंदी के बेहद महत्वपूर्ण कवि-लेखक हैं।  प्रस्तुत है उनकी कुछ कविताएँ जो उन्होंने ख़ास चकमक के लिए लिखीं ।   1. सुन्दर गुड़िया भी सुंदर  बुढ़िया भी सुंदर  बुढ़िया की बेटी  सुंदर भी सुंदर  सुंदर गगन है  सुंदर समंदर  बुढ़िया का बेटा  चंदर भी सुंदर  बछिया भी सुंदर  पड़िया भी सुंदर  बुढ़िया का मुर्गा  कलंदर भी सुंदर  (नवम्बर, 2017 चकमक में प्रकाशित)  चित्र - ओतिया ओसेलिआनि 2. आ गई फसल लावनी आ गई फसल लावनी कड़ी धूप से तेज़ हवा से  हरी फसल में लाली  ना काटो तो झड़ जाएँगी  पकी-पकी सब डाली  आ गई फसल लावनी आ गई फसल लावनी फसल काटने चली खेत ले ले हाथों में हँसिया  रूपी-धूपी मजदूरिन  गाती जाती है रसिया  आ गई फसल लावनी आ गई फसल लावनी बतरस ले ले काट रही है खेत मालकिन रस्सो चार पाँत ले सबसे आगे है मजदूरिन जस्सो आ गई फसल लावनी आ गई फसल लावनी कटे पड़े में पड़ी हुई कुछ  गेहूँ की लम्बी नड़ियाँ सिला बीनने आईं लड़कियाँ नभ से उतरी चिड़ियाँ आ गई फसल लावनी आ गई फसल लावनी (मार्च, 2018 चकमक...

बिना नाम की नदी - केदारनाथ सिंह

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  केदारनाथ सिंह का जन्‍म  7 जुलाई 1934 में  में उत्‍तर प्रदेश के  बलिया जिले के चकिया गॉंव  में हुआ था। वे  साहित्य जगत में यह एक विख्यात लेखक के रूप में जाने जाते है जो की भारतीय कवियों में अपनी एक अलग पहचान बनाकर रखते थे।  वे  दिल्ली में रहकर भी बलिया और बनारस की मिट्टी को बहुत याद किया करते थे।  प्रस्तुत है चकमक में प्रकाशित उनकी कुछ कविताएँ।  1.  कपड़े सूख रहें हैं हज़ारों-हज़ार मेरे या न जाने किस के कपड़े रस्सियों पर टंगे हैं और सूख रहे हैं   मैं पिछले कई दिनों से शहर में कपड़ों का सूखना देख रहा हूँ   मैं देख रहा हूँ हवा को वह पिछले कई दिनों से कपड़े सुखा रही है उन्हें फिर से धागों और कपास में बदलती हुई कपड़ों को धुन रही है हवा   कपड़े फिर से बुने जा रहे हैं फिर से काटे और सिले जा रहे हैं कपड़े आदमी के हाथ और घुटनों के बराबर   मैं देख रहा हूँ धूप देर से लोहा गरमा रही है हाथ और घुटनों को बराबर करने के लिए   कपड़े सूख रहें हैं और सुबह से धीरे-धीरे गर्म हो रहा है लोहा। चित्र - शौर्य प्रताप  2.   कपा...