चल उड़ जा रे पंछी- जितेन्द्र भाटिया
चल उड़ जा रे पंछी
फोटो और लेख - जितेंद्र भाटिया
गर्मियों के दिन फिर आ गए हैं! क्या तुमने ध्यान दिया है कि
सर्दियों में अक्सर दिखने वाले कुछ परिचित पक्षी गर्मियों के आते ही न जाने कहाँ गुम
हो जाते हैं. पूंछ थिरकने वाला ‘थिरथिरा’, तालाब के सुदूर कोनों में तैरती छोटी
मुर्गाबियाँ और हवा में ऊंचे उड़ते उकाब, ये सब हमारे मैदानी इलाकों में सिर्फ
सर्दियों में ही दिखाई देते हैं.
अब तो तुम जान गए हो कि पक्षियों के जीवन में दो सबसे ज़रूरी
क्रियाएँ हैं—भोजन, और प्रजनन! इन्हीं दोनों के लिए पक्षी उड़कर लम्बी यात्राएँ
करते हैं. कुछ लोग गर्मियों के महीनों में छुट्टियाँ मनाने पहाड़ों में चले जाते
हैं न? कुछ इसी तरह कई पक्षी गर्मियों में उत्तर का रुख करते हैं. फर्क सिर्फ इतना
है कि पक्षियों की ये यात्राएँ छुट्टी के लिए नहीं, बल्कि भोजन और प्रजनन की
जिम्मेदारियां निभाने के लिए होती हैं.
वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में पक्षियों की नौ हज़ार
से अधिक प्रजातियों में से लगभग 40 प्रतिशत हर साल एक जगह से दूसरी जगह का प्रवास या
प्रव्रजन (migration) करती हैं. पक्षियों की ये यात्राएँ कई हज़ारों से चली आ रही हैं और ग्रीक
के कई पुराने ग्रंथों और बाइबिल तक में इनका ज़िक्र मिलता है. प्रव्रजन कभी एक-तरफ़ा
नहीं होता. यानी मौसम बदलने के बाद पक्षी
फिर से अपनी वापसी यात्रा पर निकल पड़ते हैं और यह चक्र साल-दर- साल चलता रहता है.
प्रव्रजन में सबसे विलक्षण है पक्षियों का लम्बी दूरी का
प्रवास (long distance migration). इसमें पक्षी सर्दियों के बढ़ते ही अपने ठन्डे प्रदेशों को छोड़कर हज़ारों
मील दूर हमारे जैसे गर्म देशों की ओर झुण्ड बनाकर उड़ चले आते हैं—ठण्ड से बचने और अपने
अनुकूल भोजन की तलाश में. राजस्थान और कई अन्य प्रान्तों में कुरजाएं (demoiselle
cranes) सितम्बर- अक्टूबर में हजारों की संख्या में मंगोलिया और
पूर्वी योरोप से आती हैं. मार्च महीने के अंत में जब यहाँ गर्मी बढ़ने लगती है और
भोजन मिलना कठिन हो जाता है, तब ये वापस अपने ठन्डे प्रदेशों में लौट जाती हैं,
घोंसले बनाने और अंडे देने के लिए.
सुदूर मंगोलिया से सर्दियों में हमारे देश में आने वाली कुर्जाएँ
गर्मियों में वापस उत्तर एशिया में लौट जाती हैं
पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध में चूंकि मौसम उलट होता है,
इसलिए वहां पक्षी सर्दियों में उत्तर की ओर यात्रा करते हैं और गर्मियों में
दक्षिण में लौट जाते हैं.
इतनी लम्बी उड़ानें भरकर ये पक्षी अपने चुने हुए स्थान पर
बिना भटके कैसे पहुँचते हैं, इसकी अद्भुत कहानी हम तुम्हें आगे बताएँगे.
कुछ पक्षी ये लम्बी यात्राएं करने की जगह सिर्फ छोटी दूरी
का प्रवास (short distance
migration) करते हैं. जैसे हमारी स्थानीय गुगरल और सिल्ही बत्तखें
गर्मियों में पानी और भोजन की तलाश में आस पास के पानी के क्षेत्रों में चली जाती
है.
स्थानीय गुगरल बत्तख लम्बा सफ़र नहीं करती गर्मियों में यह पास के तालाबों में चली जाती है
पहाड़ी क्षेत्रों के पक्षियों में इससे मिलता-जुलता एक और प्रवास होता है. सिक्किम
और भूटान में 5000 मीटर की ऊँचाइयों में रहने वाला तीतर जैसा पक्षी रक्तिम फेजेंट
(bloood pheasant) अत्यधिक सर्दी पड़ने पर नीचे 3000 मीटर तक उतर आता है और मौसम बदलने के बाद फिर वापस ऊपर चला जाता है. हिमालय की ठंडी
आबोहवा में रहने वाले मनुष्यों की तरह वहां के कई दूसरे पक्षी भी यही करते हैं.
पक्षियों के ठण्ड एवं ऊंचाइयों से जुड़े इस प्रवास को हम (altitudinal
migration) कहते हैं.
पक्षियों के पंख उनके सबसे ज़रूरी अंग होते हैं. सभी
पक्षियों के पंख हर साल झरते हैं और उनके स्थान पर नए पंख उग आते हैं. पंखों के
झरने की इस प्रक्रिया को अंग्रेजी में मोल्टिंग (moulting) कहते हैं. शाही चकवा (common shelduck) जैसे कुछ पक्षी पंख झरने की प्रक्रिया
में इतने नंगे हो जाते हैं कि कुछ दिनों के लिए उनके लिए उड़ना तक मुश्किल हो जाता
है. ऐसे पक्षी पंखों के झरने से पहले किसी सुरक्षित निर्जन द्वीप में चले जाते
हैं, ताकि नए पंखों के आने तक वे एकांत में सुरक्षित रह सकें. तो यह पक्षियों का
एक और तरह का प्रवास हुआ, यानी ‘मोल्टिंग प्रव्रजन’ (moulting
immigration).
लेकिन हर साल दो तरफ़ा सफ़र पर निकलने वाले इन पक्षियों के
अलावा बहुत सारे पक्षी ऐसे हैं जो सारा समय एक ही जगह पर बिताते हैं. इन्हें तुम स्थानीय
पक्षी कह सकते हो. और कुछ ऐसे भी हैं जो सिर्फ थोड़े दिनों के लिए हमारे प्रदेश से
गुज़रकर आगे निकल जाते हैं (passage migrants). पक्षियों के इन आकाशमार्गों की कहानी
तुम्हें आगे सुनायेंगे!
पक्षियों से जुड़ी अनोखी और रोचक जानकारी के लिए पढ़े चकमक के विभिन्न अंको में प्रकाशित पक्षियों का अनोखा संसार।
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ReplyDeleteWe need basic study of the Nature for our children ,with scientific attitude.
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