Popular posts from this blog
एकलव्य द्वारा प्रकाशित, शिक्षा साहित्य की महत्वपूर्ण किताबें...
एकलव्य एक स्वैच्छिक संस्था है जो पिछले कई वर्षों से शिक्षा एवं जनविज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही है। एकलव्य की गतिविधियाँ स्कूल में व स्कूल के बाहर दोनों क्षेत्रों में हैं। एकलव्य का मुख्य उद्देश्य ऐसी शिक्षा का विकास करना है जो बच्चे से व उसके पर्यावरण से जुड़ी हो; जो खेल गतिविधि व सृजनात्मक पहलुओं पर आधारित हो। अपने काम के दौरान हमने पाया है कि स्कूली प्रयास तभी सार्थक हो सकते हैं जब बच्चों को स्कूली समय के बाद स्कूल से बाहर और घर में भी रचनात्मक गतिविधियों के साधन उपलब्ध हों। किताबें तथा पत्रिकाएँ इन साधनों का एक अहम हिस्सा हैं। पिछले कुछ वर्षों में हमने अपने काम का विस्तार प्रकाशन के क्षेत्र में भी किया है। शिक्षा, जनविज्ञान एवं बच्चों के लिए सृजनात्मक गतिविधियों के अलावा विकास के व्यापक मुद्दों से जुड़ी किताबें, पुस्तिकाएँ, सामग्री आदि भी एकलव्य ने विकसित एवं प्रकाशित की हैं। शिक्षा साहित्य पर कुछ चुनिन्दा किताबों के बारे में आज हम आपको यहाँ बता रहें हैं। अगर आप शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी तरह से जुड़े हुएं हैं तो किताबों का यह सेट आपके लिए किसी खज़ाने से कम नहीं। 1. आज स्क...
गदर में ग़ालिब - डॉ. कैलाश नारद
आपने ग़ालिब का नाम जरूर सुना होगा। वे उर्दू के सबसे बड़े शायर कहे जाते हैं। इस कारण विश्व साहित्य में भी उनका नाम है। वे दिल्ली के रहने वाले थे। आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फर को खुद भी शायरी का शौक था। ग़ालिब उनके दोस्त थे। सन् 1857 में भारत की पहली जनक्रान्ति हुई। हजारों निर्दोष व्यक्तियों को आज़ादी की इस लड़ाई में अंग्रेज़ों ने मार डाला। ग़ालिब उन दिनों दिल्ली में थे। अंग्रेज़ों के अत्याचारों को खुद उन्होंने देखा। तब उन्होंने एक डायरी लिखी थी- दस्तम्बू, दस्तम्बू में ग़ालिब ने 1857 में दिल्ली का हाल लिखा है। इसमें साधारण आदमी की मुसीबत और भूख तथा प्यास से तड़पते लोगों का भी जिक्र है। चित्र - गूगल से साभार ग़ालिब ने दस्तम्बू में लिखा है... अँग्रेज़ों ने दिल्ली में आते ही सीधे-सादे लोगों को मारना शुरू कर दिया। उन्होंने गरीबों के घर भी जला दिए। गोरों के डर से दिल्ली वालों में भगदड़ मच गई। अपनी-अपनी जान बचाकर वे भाग निकले। जिस गली में मैं रहता हूँ उसमें सिर्फ दस-बारह घर थे। गली में घुसने का सिर्फ एक ही रास्ता था।...
स्वागत है, भइ, स्वागत है!
ReplyDeleteज़ोर-शोर से स्वागत है!
--
ब्लॉगिंग की दुनिया में चकमक को देखकर बहुत ख़ुशी हुई!
--
मैंने "सरस पायस के साथी" के अंतर्गत
चकमक के ब्लॉग का लिंक
अपने ब्लॉग पर लगा दिया है!