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हाथी आया गाँव में

हाथी आया गाँव में हाथी आया हाथी आया सब चिल्लाए गाँव में उपले पाथ रही थी काकी बोली देखो देखो आया हाथी काका दौड़ा दौड़ा आया अरे महावत हाथी लाया लगी बताने बूढी दादी बड़े दिनों में आया हाथी  हाथी आया गाँव में  बच्चे देख रहे थे हाथी को दूर खड़े हो छाँव में -प्रभात  इस कविता को एक बार मन में पढो| थोड़ी देर बाद जब इसके अर्थ मन में घुलने लग जाए तो इसे एक बार फिर पढो| भाव के साथ बोल कर| जैसे, अपने  किसी दोस्त को सुनाते हैं वैसे| कहते हैं कविता कुछ पढ़ कर समझ में आती है और समझने के बचे हिस्से में कुछ सुनकर समझ में आती है| इस कविता में गाँव की एक साधारण घटना है| हाथी का आना| हालाँकि यह कविता हाथी आने की घटना के बारे में नहीं है| जैसे, घर बनाने में ईंट-गारा लगता है| घर को देखो तो वह भी ईंट-गारा दिखता है| पर घर एक जगह होती है जहाँ लोग मिल-जुलकर रहते हैं| घर की मिल-जुल ऊपर से कहाँ दिखती है? इस कविता में भी ठीक यही बात है| हाथी आ जाने की घटना सिर्फ कविता का ईंट-गारा है| असल बात है कि कैसे इतने सारे लोग किसी एक घटना से जुड़े हैं| हाथी का आना जैसे गाँव की झील में उठ गई एक तरंग है ...

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चित्र को बड़ा करने के लिए चित्र पर क्लिक करें| रात समंदर है कितना सारा पानी इसके अन्दर है! शोभा घारे के इस चित्र को देख कर मन में कई ख्याल आते हैं| दो पंक्तियाँ हमने लिखी हैं| आप भी कुछ लिखिए| अपनी पंक्तियाँ आप नीचे कमेंट्स(comments) में छोड़ सकते हैं|