ये मेरे बाग की मिट्टी में कुछ तो है ये जादुई ज़मीं है क्या? ज़मीं को जादू आता है! अगर अमरूद बीजूँ मैं, तो ये अमरुद देती है अगर जामुन की गुठली डालूं तो जामुन भी देती है करेला तो करेला ....निम्बू तो निम्बू! अगर मैं फूल माँगू तो गुलाबी फूल देती है मैं जो रंग दूँ उसे, वो रंग देती है ये सारे रंग क्या उसने कहीं निचे छुपा रक्खे हैं मिट्टी में? बहुत खोदा मगर कुछ भी नहीं निकला.....! ज़मीं को जादू आता है! ज़मीं को जादू आता है बड़े करतब दिखाती है ये लम्बे-लम्बे ऊँचे ताड़ के जब पेड़, ऊँगली पर उठाती है तो गिरने भी नहीं देती! हवाएं खुद हिलाती हैं, जमीं हिलने नहीं देती! मेरे हाथों से शर्बत, दूध, पानी कुछ गिरे सब ठीक डीक जाती है ये कितना पानी पीती है! गटक जाती है जितना दो.. इसे लोटे से दो या बाल्टी से, या नल दिन भर खुला रख दो गज़ब है, पेट भरता ही नहीं इसका सुना है ये नदी को भी छुपा लेती है अन्दर! ज़मीं को जादू आता है! यक़ीनन जादू आता है!! -गुलज़ार