एकलव्य द्वारा प्रकाशित, शिक्षा साहित्य की महत्वपूर्ण किताबें...



एकलव्य एक स्वैच्छिक संस्था है जो पिछले कई वर्षों से शिक्षा एवं जनविज्ञान के क्षेत्र में काम कर रही है। एकलव्य की गतिविधियाँ स्कूल में व स्कूल के बाहर दोनों क्षेत्रों में हैं। एकलव्य का मुख्य उद्देश्य ऐसी शिक्षा का विकास करना है जो बच्चे से व उसके पर्यावरण से जुड़ी हो; जो खेल गतिविधि व सृजनात्मक पहलुओं पर आधारित हो। अपने काम के दौरान हमने पाया है कि स्कूली प्रयास तभी सार्थक हो सकते हैं जब बच्चों को स्कूली समय के बाद स्कूल से बाहर और घर में भी रचनात्मक गतिविधियों के साधन उपलब्ध हों। किताबें तथा पत्रिकाएँ इन साधनों का एक अहम हिस्सा हैं।

पिछले कुछ वर्षों में हमने अपने काम का विस्तार प्रकाशन के क्षेत्र में भी किया है। शिक्षा, जनविज्ञान एवं बच्चों के लिए सृजनात्मक गतिविधियों के अलावा विकास के व्यापक मुद्दों से जुड़ी किताबें, पुस्तिकाएँ, सामग्री आदि भी एकलव्य ने विकसित एवं प्रकाशित की हैं। शिक्षा साहित्य पर कुछ चुनिन्दा किताबों के बारे में आज हम आपको यहाँ बता रहें हैं। अगर आप शिक्षा के क्षेत्र में किसी भी तरह से जुड़े हुएं हैं तो किताबों का यह सेट आपके लिए किसी खज़ाने से कम नहीं। 


1. आज स्कूल में तुमने क्या पूछा 
लेखक- कमला मुकुन्दा 
अनुवाद- पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा 
चित्र-  राधिका नीलकान्तन 

- एक प्रतिबद्ध शैक्षिक कार्यकर्ता द्वारा लिखी यह किताब बाल मनोविज्ञान पर पिछले 30 सालों के शोध का सार प्रस्तुत करती है। अपनी सरल और रवानगी-भरी शैली में यह कई ऐसे मिथकों को ध्वस्त करती है जो बच्चों के सीखने के बारे में प्रचलित हैं, और प्रगतिशील शिक्षण पद्धति में हमारे विश्वास को और पुख्ता करती है। साथ ही शिक्षकों के चिन्तन-मनन के लिए यह शोध के कई नए दायरे सामने रखती है। भारतीय सन्दर्भों की ज़मीन पर मज़बूती से खड़ी इस किताब को शिक्षा जगत के हरेक गम्भीर कार्यकर्ता को ज़रूर ही पढ़ना चाहिए।




2. दीवार का इस्तेमाल और अन्य लेख
लेखक- कृष्ण कुमार 
चित्र- रुस्तम सिंह 

इस पुस्तक में शामिल किए गए छोटे लेख अपने मूल रूप में अलग-अलग अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए थे। इस तरह की संक्षिप्त टिप्पणियों में यह सुविधा रहती है कि शिक्षा के व्यापक और आम तौर पर निराश करने वाले परिदृश्य को कुछ बारीकी से, किसी एक प्रसंग में देखा और चित्रित किया जाए। वास्तव में शिक्षा पर विचार करने के लिए समस्याओं की बहुत बड़ी परिधि या सूचना बनाना ज़रूरी नहीं होता, भले ही यह बात सच है कि शिक्षा की समस्याएँ सिर्फ शिक्षा की ही नहीं हैं, वे समाज और राज्य की संरचना और समस्याओं से भी जुड़ी हैं। उन्हें इस वृहत्तर परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए भी छोटे-छोटे प्रसंग ज़रूरी हैं, वरना हमारी समझ अमूर्त रहेगी और उसे सम्प्रेषित करना मुश्किल बना रहेगा।




3. शिक्षा और आधुनिकता 
लेखक- अमन मदान 

यह किताब आज के दौर के कुछ बुनियादी बदलावों की और शिक्षा के लिए इनके क्या मायने हैं इसकी पड़ताल करने की कोशिश करती है। इसका मुख्य उद्देश्य है देश और दुनिया को प्रभावित कर रहे प्रमुख बदलावों में से कुछ को समझने में पाठकों की मदद करना। यहाँ इनकी चर्चा शिक्षा के सन्दर्भ में की गई है कि इन्होंने शिक्षा को कैसे प्रभावित किया है और भारत व पूरी दुनिया में शिक्षा के सामने ये कौन-सी नई चुनौतियाँ खड़ी कर रहे हैं। यहाँ तीन व्यापक प्रक्रियाओं की बात की गई है (1) आज की दुनिया में जटिल समाजों का विकास (2) पूँजीवाद और जिंसीकृत लेन-देन का समाज और शिक्षा पर असर, और (3) समाज और शिक्षा का बढ़ता तार्किकीकरण व नौकरशाहीकरण । कई समाज वैज्ञानिक इन तीनों को उस महत्वपूर्ण वैश्विक प्रवृति का आधार मानते हैं जिसे आधुनिकता का विकास और विस्तार कहा जाता है। असल में आज के कई वाद-विवादों का मुद्दा यही है कि ये प्रक्रियाएँ अच्छी हैं या बुरी या फिर यह कि ये बुनियादी तौर पर तो फायदेमन्द हैं मगर इनको बहुत ही अलग तरीके से करने की जरूरत है। इन तीनों प्रक्रियाओं पर हम क्या पक्ष लेते हैं इसका गहरा असर इस बात पर पड़ता है कि शिक्षा के बारे में और उसमें क्या करना चाहिए, इस बारे में हम क्या राय रखते हैं। इसलिए इनकी बेहतर समझ का असर स्कूल और उच्च शिक्षा के हर पहलू से जुड़े हमारे कार्यों और रणनीतियों पर ही नहीं बल्कि समकालीन सामाजिक जीवन के बाकी पक्षों पर भी पड़ता है।


4. उम्मीद के रंग 
सम्पादन- प्रभात 

देश के सरकारी स्कूलों में चुपचाप काम कर रहे अनेक शिक्षक हैं जो बच्चों की शिक्षा की संवेदनशीलता को गहराई से अनुभव करते हैं। वे अपनी भूमिका को न सिर्फ समझते हैं बल्कि उस पर खरा उतरने के लिए लगातार कोशिश भी करते हैं। यह किताब ऐसे ही कुछ शिक्षकों के अनुभवों का संकलन है। शिक्षकों के ये संस्मरण दिखाते हैं कि किस तरह सीमित संसाधनों के तमाम दूसरी चुनौतियों से ये शिक्षक अपनी आन्तरिक प्रेरणा से जूझते हैं और नए व रचनात्मक तरीकों से उनसे पार भी पाते हैं।



5. भाषा का बुनियादी ताना-बाना 
चयन व सम्पादन- रजनी द्विवेदी, ह्रदय कान्त दीवान 

भाषा हमारी पाठ्यचर्याओं पाठ्यपुस्तकों, सीखने सिखाने की विधियों आदि का आधार है। इसलिए भाषा व उसे सीखने के बुनियादी ताने-बाने की समझ हर शिक्षक के लिए आवश्यक है और यह उसे बच्चों के सीखने के रास्तों, उनके व्यवहारों व अड़चनों को जानने में मददगार हो सकती है। यह संकलन भाषा शिक्षकों, शिक्षक प्रशिक्षकों व भाषा सीखने-सिखाने के कार्य से जुड़े अन्य लोगों की भी उन बुनियादी बातों को समझने में मदद करेगा जो भाषा व भाषा शिक्षण से जुड़े विभिन्न पहलुओं के प्रति दृष्टिकोण व रवैया बनाती है। संकलन में शामिल विषय कई वजहों से महत्वपूर्ण है। जैसे भाषा का हम से, हमारे समाज, संस्कृति व हमारी पहचान से क्या सम्बन्ध है यह संकलन इस पर रोशनी डालता है। संकलन के चार खण्डों में भाषा की प्रकृति, भाषा व समझ का विकास, भाषा, व्याकरण व वैज्ञानिक विश्लेषण और भाषा व समाज से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गई है। यह संकलन भाषा व उसकी प्रकृति को समझने और भाषा सिखाने के दृष्टिकोणों पर विमर्श व विवेचन के लिए उपयोगी साबित हो सकता है।




6. एक स्कूल मैनेजर की डायरी 
लेखक- फ़राह फ़ारूक़ी 

डायरी के इन पन्नों में सरकारी मदद से चलने वाले एक आम से स्कूल की ख़ास तफ़सील मौजूद है। बहुत-सी आवाज़ों को समेटते हुए यह घना ब्यौरा सबूतों पर टिका है और पढ़ाई के लिए बच्चों, समुदाय और स्कूल से जुड़े लोगों की जद्दोजहद को बयान करता है। यह किताब 'अकादमिक' के तयशुदा दायरों पर सवाल उठाते हुए एक शैक्षिक नज़रिए से मैनेजर के काम और सत्ता की पेचीदगियों को उभारती है। साथ ही यह स्कूल, समुदाय, मोहल्ले और राज्य के बीच की कड़ियों और इख़्तिलाफ़ को दिखाती है। इसमें स्कूल के दस्तूरों, समितियों और कक्षा में पढ़ाई-लिखाई का जायजा भी पेश किया गया है।




7. समरहिल 
लेखक-  ए. एस. नील 
अनुवाद- पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा 

सारे जुर्म, सारी नफरत, सारी लड़ाइयों की जड़ में हमारी नाखुशी है। यह किताब दिखाने की कोशिश करती है कि दुख कैसे पैदा होता है, कैसे वह इन्सान के जीवन को बर्बाद करता है। और बच्चों की परवरिश कैसी हो कि नाखुशी की गुंजाइश ही न रहे। 



8. लोकतांत्रिक विद्यालय 
सम्पादन- माइकल डब्ल्यू. एपल, जेम्स ए. बीन 
अनुवाद- स्वयंप्रकाश 

लोकतांत्रिक विद्यालय चार विद्यालयों की कहानी है। ये ऐसे विद्यालय हैं जिन्होंने अपने सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का आधार लोकतांत्रिक और आलोचनात्मक शिक्षण पद्धतियों को बनाया। ये विद्यालय छात्रों और समुदाय की जरूरतों तथा उनकी संस्कृति और इतिहास पर आधारित शिक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। ये नस्लवाद विरोधी, समलैंगिकता- भय विरोधी और लिंगभेद विरोधी सिद्धान्तों के लिए प्रतिबद्ध हैं, और सामाजिक न्याय के प्रति गहरे सरोकार के गिर्द संयोजित हैं। ये कोरे अमूर्त सिद्धान्त नहीं हैं, बल्कि विद्यालय के पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धति में गहरे तक गुंजित हैं। शिक्षण पद्धति में परस्पर विचार-विमर्श से तय किया गया पाठ्यक्रम, छात्रों व समुदाय की विस्तृत भागीदारी और मूल्यांकन के लचीले रूप शामिल हैं। इन विद्यालयों की कहानी उन्हीं शिक्षाकर्मियों के शब्दों में बयान की गई है जिन्होंने इन्हें अमली जामा पहनाया है। कहानियाँ ईमानदारी से कही गई हैं।







9. बच्चे असफल कैसे होते हैं
लेखक - जॉन होल्ट 
अनुवाद- पूर्वा याज्ञिक कुशवाहा 

द न्यू यॉर्क रिव्यू ऑफ बुक्स  ने जॉन होल्ट को पिआजे के समकक्ष ठहराया। लाइफ पत्रिका ने उन्हें "तर्क की विनम्र आवाज़" कहा।  मील का पत्थर बन चुकी इस तर्कसंगत व मौलिक पुस्तक की अब तक लाखों प्रतियाँ बिक चुकी हैं। इस विस्तृत और संशोधित संस्करण में शिक्षा के क्षेत्र में जॉन होल्ट के लगभग डेढ़ दशक के और अनुभवों का भी समावेश है। इस पुस्तक में जॉन होल्ट ने बच्चों को खेलने, सीखने और बड़े होने की आज़ादी मिलने की पैरवी की है ताकि बच्चे अपनी क्षमताओं के शिखर पर पहुँच सकें। एक अध्यापक, शिक्षा सलाहकार और होम स्कूलिंग मूव्मेंट से जुड़े होने के कारण बच्चों के प्रति उनकी समझ गहरी हुई है। इस पुस्तक में ये बच्चे दुनिया को कैसे परखते है और "सामाजिक सीढ़ी" पर कैसे चढ़ते हैं और अधिकार के मुद्दे से कैसे निपटते हैं आदि पर एक नई रोशनी डालते हैं। हर अभिभावक और शिक्षक इससे लाभान्वित होगा। "जॉन होल्ट ने वाकई एक अच्छा और ज़रूरी काम किया है। बेशक एक अच्छी किताब। " - ए.एस. नील




10. भारत में अंग्रेज़ी की समस्या 
लेखक- आर.के.अग्निहोत्री, ए. एल. खन्ना 
अनुवाद- बरुण कुमार मिश्रा 

शिक्षा की शुरुआती पायदान पर मातृभाषा की प्रमुखता और उच्च शिक्षा में अंग्रेज़ी का महत्व, दोनों की ही अपनी अहमियत है पर महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि अधिकतर लोग अंग्रेज़ी बोलने-लिखने में प्रवीणता हासिल करना चाहते हैं। सात शहरों में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर यह किताब भारत में अंग्रेज़ी की स्थिति व उसकी भूमिका की जाँच करती है। साथ ही यह अंग्रेजी का उपयोग करने वालों की जरूरतों तथा रवैयों का चित्र प्रस्तुत करती है। किताब के लेखक यह देखने की कोशिश करते हैं कि बुजुर्ग तथा युवा लोग कल के भारत में अँग्रेज़ी की क्या कल्पना करते हैं।


11. जीवन की बहार 
लेखक- माधव गाडगिल 

जैव विकास एक मुश्किल विषय है। विकास की यह यात्रा रासायनिक अणुओं के निर्माण, उनके संगठन और फिर उस संगठन के क्रमिक विकास की कहानी है जिसमें बढ़ते क्रम में अधिक जटिल सूचनाओं का प्रबन्‍धन, उस सूचना के उपयोग से कृत्रिम विश्व का निर्माण, विश्व की मानसिक छवि का निर्माण और भविष्य का नियोजन तक शामिल हैं। प्रोफेसर गाडगिल ने रोचक विवरणों की मदद से इसे सरल व सुगम बनाने का प्रयास किया है।






शिक्षक दिवस और विश्व साक्षरता दिवस के मौके पर एकलव्य द्वारा इन किताबों के सेट पर विशेष छूट दी जा रही है। यह ऑफर सीमित समय के लिए है। आप यहाँ  से इस सेट को ऑर्डर कर सकते हैं। 

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